Tuesday, April 13, 2010

पुष्प की अभिलाषा ...



Photo : Roses in my Garden


पुष्प की अभिलाषा

चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ

चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ

चाह नहीं, सम्राटों के शव पर हे हरि, डाला जाऊँ

चाह नहीं, देवों के सिर पर चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ

मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर देना तुम फेंक

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पर जावें वीर अनेक ।।

- माखन लाल चतुर्वेदी




I remember a school time poem by famous Hindi poet Shri Makhan Lal Chaturvedi. An unforgettable poem about the aspiration of a flower.




1 comment:

  1. Dear Jyotiji,
    I also read this poem in my middle school days.
    for this poem I simply says in hindi 'is kavita ko padker Rom Khade ho jate hain"

    Regards,
    Er.H.K.jain

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